4+ Best Poems About Indian Culture In Hindi | भारतीय संस्कृति पे कविता
Poems About Indian Culture In Hindi | भारतीय संस्कृति पे कविता
Poems About Indian Culture In Hindi -दोस्तो, भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे प्राचीन संस्कृति है। भारतीय संस्कृति में इंसान को जीने का सही तरीका सिखाया जाता है। भारतीय संस्कृति प्राचीनकाल से ही आधुनिक रही है ।
आज के इस लेख में हम प्रस्तुत करेंगे कुछ कविताएं भारतीय संस्कृति पर। उम्मीद करते है ये आपको पसंद आएगी। अगर आप चाहे तो इन्हे अपने दोस्तो के साथ share bhi kar sakte hai।
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Poem About Indian Culture in Hindi | भारतीय संस्कृति पे कविता
भारत की संस्कृति निराली
सबको देती मान सम्मान
बड़ों की सेवा सब करते हैं
छोटों से करते हैं प्यार,
संस्कारों की भूमि यह है
सबको देती मान सम्मान।
सुबह सबेरे मात पिता की
करते हैं चरण वंदना यहां
आशीष पाते हैं ये बच्चे
जीवन में सफल हो जाते हैं
संस्कारों की भूमि यह है
सबको देती मान सम्मान।
रथ
सद् गुण हर बाला में हो
सदाचारी हर बालक हो
मर्यादित हर नारी हो
पुरुष आदर्शो की खान हो,
संस्कारो की भूमि यह है
सबको देती मान सम्मान।
वेद पुराणो ने जो बतलाया
करते आचरण यहां सभी
प्रेम,स्नेह,मान मर्यादा को
जीवन में अपनाते सभी
संस्कारो की भूमि यह है
सबको देती मान सम्मान।
मां है ईश्वर, गुरु भगवान
करते है सभी इनका गुण गान
त्यौहारों को मनाते मिलजुल कर
भारत की संस्कृति महान
संस्कारो की भूमि यह है
सबको देती मान सम्मान।
————————————
~ कालिका प्रसाद सेमवाल
Poem On Culture Of India In Hindi
भारत- भाषा- संस्कृति ,
वेद — ज्ञान– भण्डार ।
गौ – गंगा – गीता त्रिविध ,
हैं अमूल्य उपहार ।
गुरु – ब्राह्मण – माता पिता ,
ज्ञान – लोक के द्वार ।
मन वच कर्म सेवा करो ,
मेवा मिले अपार ।।
नारी शक्ति है पुरुष की ,
दोनों से संसार ।
संतानों को ज्ञान दो ,
मिट जाए अंधियार ।।
मर्यादा कुल की शान है ,
रामायण से सीख ।
अपनी संस्कृति – सभ्यता ,
गैरों से मत सीख ।।
समॄद्धि -शान्ति का पक्षधर ,
भारत बड़ा उदार ।
सेना काल समान है ,
शत्रु करें यदि वार ।।
भारतीय सब एक हैं ,
जाति धर्म बिसराएं
हो अखण्ड भारत सुदृढ़ ,
विश्व — मुकुट कहलाए ।।
भारत विघटन कर रहे ,
बुद्धिजीवी कुछ लोग ।
प्रभु इनको सद-बुद्धि दे ,
मिटे स्वार्थ का रोग ।।
अतिथि रूप भगवान का ,
सादर भोग लगाओ ।
शुद्ध भारतीय संस्कृति ,
पथिक सभी अपनाओ ।।
Poem On Indian Culture In Hindi | 2 lines Poem on Indian Culture
#स्पंदित ह्रदय से निकली इस पीड़ित चेतना को
भावनाओं के कंदराओं में बैठी तीव्र वेदना को
किससे कहूँ ?
आधुनिक समाज के तथाकथित विकास को
हो रहे मानवता के तीव्र ह्रास को
इंसानियत के कलेजे को चीर कर बहाती है लहू
किससे कहूँ ।
किससे कहूँ ?
रिश्तों के जड़ों में हो रहे उस कटाव को
मानवता के बीच दुश्मनी पैदा कर रहे उस मन मुटाव को
किससे कहूँ मैं ?
हो रहे माता पिता के कत्ल-ए-आम को
तथा कथित रिश्तों की खुशियों के जाम को
बेबस हूँ मैं करूँ भी क्या परन्तु ये सब कैसे सहूँ
किससे कहूँ ।
किससे कहूँ ?
तरक्की के नाम पर हो रहे समाज के पतन को
आंसू बहाते देख संस्कृति के लाचार नयन को
किससे कहूँ ?
सभ्यता के उपर हो रहे ऐसे अत्याचार को
लोगों के निरंतर गिर रहे विचार को
दम घुटता है ऐसे समाज में समझ नहीं आता यहाँ कैसे रहूँ
किससे कहूँ ।
किससे कहूँ ?
नवीनीकरण के कारण प्रकृति में मचे घमासान को
वैदिक सभ्यता के ह्रास से हो रहे मानवता के नुकसान को
किससे कहूँ ?
इंसानियत के बदल रहे इस भयानक रूप को
प्रगति के नाम पर गहरे हो रहे इस अंधकूप को
हां ! हैवानियत का रूप ले रही है ये इंसानियत हू ब हू
किससे कहूँ ।
किससे कहूँ ?
बालकों के लुप्त हो रहे बचपन को
बड़ों के गायब हो रहे बड़प्पन को
किससे कहूँ ?
लोगों के इस बदलते रहन सहन को
संस्कारों में लग रहे इस बड़े ग्रहण को
निराश हूँ मैं ये देखकर कि ये सब कैसे सहूँ
किससे कहूँ ।
किससे कहूँ ?
अपने ही सम्मान के लिए जूझती नारी की हताशा को
आधुनिकता के नाम पर हो रहे सरे आम नग्न तमाशा को
किससे कहूँ ?
पाश्चात्य देशों के सभ्यता के पोषण को
अपनों के ही द्वारा हो रहे अपनों के शोषण को
यहाँ प्रतिदिन सभ्यताओं के बह रहे हैं लहू
किससे कहूँ ।
किससे कहूँ ?
पतझड़ बन रहे सुन्दर प्रकृति के परिधान को
नवीनीकरण में लुप्त हो रहे लहलहाती फसल गेहूं धान को
किससे कहूँ मैं
नीरस हो रहे आर्यवर्त से आती मिट्टी की सुगंध को
मिटते हुए पड़ोसियों के आपसी प्रेम सम्बन्ध को
कोई तो हो जिसके समक्ष अपनी भावनाएं रखूं
किससे कहूँ ?
काश कोई हो जो समझे मेरे इस आह्वान को
कोई हो जो कुछ कर सके समाज के उत्थान को
कोई हो जो सोचे समाज में कैसे आये शांति
ताकि आ सके मानवता की एक नई क्रांति
उसी के सामने अपनी वेदनाओं को रखूं
उससे कहूँ ।
– श्यामानंद दास
Short Poem On Indian Culture | Indian Culture Kavita in Hindi
#भारतीय संस्कृति जीवन की विधि है,
संस्कारों से पोषित बहुमूल्य निधि है।
विश्व की पहली और महान संस्कृति,
विविधता में एकता की अनुरक्त समीकृति।
अमृत स्रोतस्विनी विकास चिरप्रवाहिता,
संस्कारित और परिष्कृत विचारवाहिता।
धन्य सुवासित भारतीय संस्कृति सुपुष्पी,
ज्ञान, भक्ति, सद्कर्मों के प्रांगण में पनपी।
समेटे सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषा की विविधता,
शिष्टाचार, संवाद, धार्मिक संस्कारों की परिशुद्धता।
परिवारों, जातियों और धार्मिक समुदायों का सभ्याचार,
विवाह, परंपराएं, रीति-रिवाज, उत्सवों का मंगलाचार।
इंसानियत, उदारता, एकता, धर्मनिरपेक्षता, अपनाएंगे,
समता, समन्वय, सदाचार से इसे अक्षुण्ण बनाएंगे।
~ सुशील कुमार शर्मा
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