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10 Best Kabir Ke Dohe in Hindi | कबीर के दोहे इन हिंदी

दोस्तो आज के इस लेख में हम कबीर के कुछ प्रसिद्ध दोहों ( Kabir ke Dohe in Hindi) से आपको साझा कराएंगे

संत कबीर दास भक्तिकालीन भारत के महान संतों में से एक है। कबीर ने अपने जीवनकाल में किए अनुभवों पर आधारित दोहे लिखे। ये दोहे सरल भाषा में लिखे गए जो की हमे जीवन सही प्रकार से जीने का ज्ञान प्रदान करते है।

आज कबीर के उन्ही दोहों में से हम आपको कुछ दोहे उनके अर्थ के साथ प्रस्तुत करेंगे।

1)जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

अर्थ: – ज्ञान का महत्वा धर्म से कही ज्यादा ऊपर है इसलिए किसी भी सज्जन के धर्म को किनारे रख कर उसके ज्ञान को महत्वा देना चाहिए। कबीर दस जी उदाहरण लेते हुए कहते है कि – जिस प्रकार मुसीबत में तलवार काम आता है न की उसको ढकने वाला म्यान, उसी प्रकार किसी विकट परिस्थिती में सज्जन का ज्ञान काम आता है, न की उसके जाती या धर्म काम आता है।


2)बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि.

अर्थ : जिसे बोल का महत्व पता है वह बिना शब्दों को तोले नहीं बोलता  . कहते है कि कमान से छुटा तीर और मुंह से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते इसलिए इन्हें बिना सोचे-समझे इस्तेमाल नहीं करना चाहिए . जीवन में वक्त बीत जाता है पर शब्दों के बाण जीवन को रोक देते है . इसलिए वाणि में नियंत्रण और मिठास का होना जरुरी है .


3)प्रेम न बड़ी उपजी , प्रेम न हाट बिकाय 

राजा प्रजा जोही रुचे , शीश दी ले जाय ||

अर्थ :कोई भी खेत में प्यार की फसल नहीं काट सकता। कोई बाज़ार में प्रेम नहीं खरीद सकता। वह जो भी प्यार पसंद करता है, वह एक राजा या एक आम आदमी हो सकता है, उसे अपना सिर पेश करना चाहिए और प्रेमी बनने के योग्य बनना चाहिए।


4)ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। 

औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।

अर्थ :मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो।


5)काल करे सो आज कर, आज करे सो अब 

पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जो कार्य तुम कल के लिए छोड़ रहे हो उसे आज करो और जो कार्य आज के लिए छोड़ रहे हो उसे अभी करो, कुछ ही वक़्त में तुम्हारा जीवन ख़त्म हो जाएगा तो फिर तुम इतने सरे काम कब करोगे। अथार्त, हमें किसी भी काम को तुरंत करना चाहिए उसे बाद के लिए नहीं छोड़ना चाहिए।


 6)दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।

जो सुख मे सुमीरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।

अर्थ: – जब हमे कोई दुःख होता है अथार्त कोई परेशानी होती है या चोट लता है तब जाके हम सतर्क होते है और खुद का ख्याल रखते है। कबीर जी कहते है कि यदि हम सुख में अथार्त अच्छे समय में ही सचेत और सतर्क रहने लगे तो दुःख कभी आएगा ही नहीं। अथार्थ हमे सचेत होने के लिए बुरे वक़्त का इंतेज़ार नहीं करना चाहिए।


7)कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और, 

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

अर्थ : कबीर दास जी ने इस दोहे में जीवन में गुरु का क्या महत्व हैं वो बताया हैं . वे कहते हैं कि मनुष्य तो अँधा हैं सब कुछ गुरु ही बताता हैं अगर ईश्वर नाराज हो जाए तो गुरु एक डोर हैं जो ईश्वर से मिला देती हैं लेकिन अगर गुरु ही नाराज हो जाए तो कोई डोर नही होती जो सहारा दे।


8)सोना सज्जन साधू जन , टूट जुड़े सौ बार |

दुर्जन कुम्भ कुम्हार के , एइके ढाका दरार ||

अर्थ: अच्छे लोगों को फिर से अच्छा होने में समय नहीं लगेगा, भले ही उन्हें दूर करने के लिए कुछ किया जाए। वे सोने के जैसे हैं और सोना लचीला है और भंगुर नहीं है। लेकिन दुर्जन व्यक्ति कुम्हार द्वारा बनाया गया मिट्टी का बर्तन जैसा होता है जो भंगुर होता है और एक बार टूट जाने पर वह हमेशा के लिए टूट जाता है।


9)कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ जो कुल को हेत। 

साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत।

अर्थ :गुरु कबीर साधुओं से कहते हैं कि वहाँ पर मत जाओ, जहाँ पर पूर्व के कुल-कुटुम्ब का सम्बन्ध हो। क्योंकि वे लोग आपकी साधुता के महत्व को नहीं जानेंगे, केवल शारीरिक पिता का नाम लेंगे ‘अमुक का लड़का आया है।


10)बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय जो मन 

देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय । 

अर्थ: कबीर दस जी कहते है कि जब मै इस दुनिया में लोगो के अंदर बुराई ढूंढ़ने निकला तो कही भी मुझे बुरा व्यक्ति नहीं मिला, फिर जब मैंने अपने अंदर टटोल कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा व्यक्ति इस जग में और कोई नहीं है। अथार्त, हमें दूसरों के अंदर बुराई ढूंढ़ने से पहले खुद के अंदर झाक कर देखना चाहिए और तब हमे पता चलेगा कि हमसे ज्यादा बुरा व्यक्ति इस संसार में और कोई नहीं है।

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